हिमाचल की कुल्लू घाटी के पांच नाले मनाली से लेकर पंजाब तक मचा रहे तबाही

हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी के पांच नाले हर साल मनाली से लेकर मैदानी इलाकों तक भारी तबाही मचा रहे हैं। इन नालों में बाढ़ आने से व्यास नदी रौद्र रूप दिखा रही है। भारी बारिश और बादल फटने से फोजल, सरवरी, कसोल, हुरला और मौहल नालों में हर बरसात में बाढ़ आने से ब्यास नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। इससे उफनती ब्यास मनाली से पंजाब तक तबाही मच रही है। लगातार ऐसा हो रहा है। कुल्लू के मोहल में स्थित जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण अनुसंधान संस्थान मौहल के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।

संस्थान ने 2014 से 2025 तक कुल्लू घाटी में बाढ़ और आपदा पर यूके की कुंब्रिया यूनिवर्सिटी, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है। इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को इस साल मई में सौंपी है। अध्ययन के अनुसार ब्रिटिश इंडिया काल के अधिकारियों ने कुल्लू के इन पांच नालों का सर्वेक्षण किया था। अब जीबी पंत संस्थान की ओर से किए गए अध्ययन में 1835 से लेकर 2020 तक डाटा लिया गया। खास बात है कि ब्रिटिश पुस्तकालय लंदन, विभिन्न शोध रिपोर्टों और साहित्य से करीब 200 साल का रिकॉर्ड भी जुटाया गया।

अध्ययन में सामने आईं ये बातें

अध्ययन में पता चला कि ये अंग्रेज अधिकारी उस वक्त इन नालों को तमाम गतिविधियों को डायरी में नोट करते थे। इसका रिकॉर्ड आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन में उपलब्ध है। इसके अलावा मौसम का डाटा नग्गर फोल्ड स्टेशन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय स्टेशन कटराई से लिया गया है। अध्ययन में पता चला कि वर्ष 1990 से 2020 तक इन नालों में बाढ़ आने की संख्या 68 प्रतिशत अधिक बढ़ी है। कुल्लू जिले में 175 वर्षों (1846-2020) में 59 रथानों पर 128 बाढ़ की घटनाएं हुई हैं। कुल्लू में भारी बारिश, बादल फटने के कारण आने बाली बाढ़ की व्यापकता 55 प्रतिशत और ग्रीष्मकालीन मानसून में बाढ़ की संख्या (जून से सितंबर) 87 फीसदी बड़ी है। पांचों नालों से जान जाने के साथ संपत्ति को नुकसान हो रहा है।

साल दर साल हो रहा जानमाल का नुकसान

इस साल भी खोखन, सरवरी, कसोल, फोजन और गुरला (गाड़ा) नाले ने भारी तबाही मचाई है। 25 जून को कसोल (ग्रहण नाला) में आई बाढ़ से यहां पार्क गाड़ियां बहने से बाल-बाल बचीं। 2023 में इस नाले में आई बाढ़ में 10 से अधिक गाड़ियां बह गई थीं और भुंतर-मणिकाय मार्ग भी बंद हो गया था। यहां से करीब 10 हजार पर्यटकों को रेस्क्यू करना पड़ा। वहीं, सरवरी नाले ने भी 2023 से 2025 तक भारी नुकसान पहुंचाया और पेयजल स्कीम को तहस-नहस कर दिया। हुरला नाले में तीन साल से बाढ़ आ रही है। शिलागढ़ के जंगल में बादल फटने से इस नाले में टनों के हिसाब से लकड़ी बहकर आई। इसका संज्ञान बीते दिनों शीर्ष अदालत ने भी लिया है। हुरला में कई बीघा जमीन, सेब और अनार के बगीचे, बई पुल भी वह गए। अगस्त में खोखन माले ने खूब तबाही मचाई और आठ गाड़ियां बह गईं। लोगों की जमीन को भारी नुकसान हुआ और जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सातत विकास अनुसंधान संस्थान मौहल कुल्लू को भी दो करोड़ का नुकसान हुआ है।

नालों के किनारे निर्माण- खनन पर लगे रोक

अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि फोजल, सरवरी, कसोल, हुरला और मौहल नालों में आ रही बाढ़ आम जनजीवन को प्रभावित कररही है। अगर इन नालों का समय रहते तटीकरण नहीं किया गया तो नाले और खतरनाक साबित हो सकते हैं। इससे जानमाल को भारी नुकसान हो सकता है। ऐसे में संस्थान ने इसकी रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकारण और प्रदेश सरकार को सौंप दी है। इसमें दो सुझाव भी दिए हैं। इनमें पांचों नालों का समय पर तटीकरण किया जाए। इसके अलावा इन नालों के किनारे किसी तरह का निर्माण और खनन न करने का सुझावा दिया है। लोगों से भी इन नालों से दूर बसने की हिदायत दी गई है। तटीकरण करने पर खास जोर दिया गया है। तभी इन नालों से होने वाली तबाही कम हो सकती है।

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