उज्जयनी तीर्थ पर मोक्षदायिनी मां शिप्रा के पावन तट पर भगवान श्री रामचंद्र जी ने त्रेता युग में अपने दिवंगत पिता राजा दशरथ के साथ समस्त पितरों के मोक्ष की कामना के साथ पिंडदान किया था। इसी वजह से तट को रामघाट कहा जाता है। अब इसी रामघाट पर 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के समय विशेष अनुष्ठान किया जाएगा।
प्राचीन मान्यता के अनुसार जब भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता व भ्राता लक्ष्मण के साथ वनवास पर निकले, तब इस वेदना से दुखी पिता दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए। वनवास में ही श्री राम को पिता के दिवंगत होने का समाचार मिला। परिवार में जेष्ठ होने के नाते उन्होंने हर तीर्थ पर अपने पितरों के लिए पिंडदान किया। इसी कड़ी में अवन्तिका पुरी में महाकाल वन में प्रवाहित मोक्षदायिनी मां शिप्रा के पिशाचमोचन तीर्थ पर पिंडदान किया। सभी देवताओं ने साक्षी होकर उनके अनुष्ठान को स्वीकार किया। भगवान श्री राम ने एक दिव्य शिवलिंग की स्थापना की थी। उनकी और माता सीता की चरण पादुकाएं आज भी चिह्नित हैं। तब से रामघाट पर ये पादुकाएं ओटले पर सुरक्षित है। पुजारी पं. गौरव नारायण उपाध्याय धर्माधिकारी ने बताया कि अनेक विपत्तियों के बाद भी हमारे पूर्वजों ने भगवान राम के पदचिह्नों को सुरक्षित व संरक्षित किया हुआ है। कई विधर्मियों ने इन चिह्नों को मिटाने का प्रयास किया। इसके बाद भी हमारे परिवार ने इनका नित्य सेवा पूजन कर चैतन्य अंश सुरक्षित रखा है। 22 जनवरी 2024 को इस दिव्य स्थान पर विशेष अनुष्ठान किया जाएगा।