भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की सर्वे रिपोर्ट से ज्ञानवापी का 355 वर्षों से चल रहा विवाद खत्म हो सकता है। यह विवाद 1669 से चल रहा है। 33 वर्षों से मामला अदालत के विचाराधीन है। यह रिपोर्ट बृहस्पतिवार को पक्षकारों को मिलने की संभावना है, फिर आगे की कानूनी लड़ाई तय होगी।
हालांकि, सर्वे रिपोर्ट से समाधान की राह आसान हो जाएगी। सर्वे को आधार बनाकर पक्षकार दावा करेंगे और अदालत के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे। साक्ष्यों के आधार पर ही अदालत अंतिम आदेश पारित करेगी।
एएसआई के सूत्रों के मुताबिक, ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक से जो साक्ष्य जुटाए गए हैं, वह वैज्ञानिक आधार पर महत्वपूर्ण साबित होंगे। एएसआई के विशेषज्ञों की टीम ने जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्तूबर और नवंबर 2023 तक ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का काम किया है।
सील वजूखाने को छोड़कर परिसर के कोने-कोने से साक्ष्य जुटाए गए हैं। मिट्टी की जांच की गई। दीवारों पर बने प्रतीक चिन्ह की फोटो, वीडियोग्राफी कराई गई। यह भी देखा गया कि प्रतीक चिन्ह किस सदी में बने हैं।
ज्ञानवापी के तहखानों से तमाम साक्ष्य मिले हैं, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को बयां कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही कह चुका है कि ज्ञानवापी के मामले में पूजा स्थल अधिनियम नहीं लागू होता है, इसलिए साक्ष्यों के आधार पर आदेश देने में अदालत को कोई दिक्कत नहीं आएगी।
औरंगजेब ने ध्वस्त कराया था मंदिर
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त कराया था। मंदिर के ऊपरी हिस्से को मस्जिद का रूप दिया था। इसके लिए तीन गुंबद बनाए थे। मुख्य गुंबद के नीचे एक और शिवलिंग है। वहां धप-धप की आवाज आती है। सील वजूखाने में शिवलिंग मिला है। सर्वे रिपोर्ट से सच सामने आ जाएगा।
कानूनी लड़ाई लड़ेंगे, माहौल बिगड़ने का डर
अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन का दावा है कि ज्ञानवापी अकबर के कार्यकाल से पहले की बनी है। इसके साक्ष्य भी हैं। औरंगजेब का शासन बाद में आया था। वजूखाने में फौव्वारा लगा है। सर्वे रिपोर्ट की प्रति के लिए बृहस्पतिवार को प्रार्थना पत्र देंगे। हम चाहते थे कि सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक न की जाए। दूसरा पक्ष इसका गलत इस्तेमाल करेगा। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करेगा। इससे माहौल खराब होगा। अब आदेश आ गया है तो नकल प्राप्त करके आगे की कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।
एक नजर में
1991: लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ का मुकदमा दाखिल करके पहली बार पूजापाठ की अनुमति मांगी गई। इस पर जिला अदालत ने सुनवाई की और मामला विचाराधीन ही रहा।
1993: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित किया।
2018: सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर की वैधता छह महीने बताई।
2019: वाराणसी की जिला अदालत ने मामले की सुनवाई फिर शुरू की।
2023: जिला जज की अदालत ने सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का आदेश दिया। सर्वे पूरा हुआ और रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 के लाॅर्ड विश्वेश्वर मामले में स्टे ऑर्डर हटाया। एएसआई से सर्वे कराने और रिपोर्ट निचली अदालत में दाखिल करने का आदेश दिया।
2024: जिला जज की अदालत ने एएसआई की सर्वे रिपोर्ट पक्षकारों को उपलब्ध कराने का आदेश पारित किया।