एमपी: नीमच में 498 और मंदसौर जिले में 174 गिद्ध बढ़े

मंदसौर और नीमच जिले में तीन दिवसीय गिद्धों की गणना का काम पूरा हो गया है। गिद्धों को मंदसौर से ज्यादा नीमच रास आया। तीन साल में नीमच में 498 तो मंदसौर में 174 गिद्ध ही बढ़े हैं। नीमच की बात करें तो 3 साल में यहां गिद्धों की संख्या 543 से बढ़कर 1041 तक पहुंच गई है। मंदसौर में 676 से आंकड़ा बढ़कर 850 हो गया।

बता दें कि गिद्ध प्रजाति खत्म होने की स्थिति में है। एशिया महाद्वीप में मात्र दो फीसदी गिद्ध ही बचे हैं। संरक्षण के लिए मप्र शासन द्वारा 2015-16 में पहली बार प्रदेश स्तरीय गणना कराई गई थी। पर्यावरण संरक्षण में गिद्धों की अहम भूमिका रहती है। विशेषज्ञ केके यादव के अनुसार एशिया महाद्वीप में 98 फीसदी गिद्ध खत्म हो गए हैं। 2015-16 की गणना के बाद 2018-19 एवं 2020- 21 में प्रदेशव्यापी गिद्ध गणना कराई गई थी, उसके बाद अब 2024 में गिद्ध गणना की गई है।

मंदसौर की यह रही स्थिति
गांधी सागर, भानपुरा गरोठ क्षेत्र में इस बार 803 गिद्धों की गणना हुई है। वहीं जिले में इनकी संख्या 850 के करीब है। खास बात यह है कि इस बार 3 दिनों तक चली गिद्धों की गणना में इनके नए आवास का भी पता चला है। वहीं, पिछली बार हुई गणना के मुकाबले इस बार गिद्धों की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्ष 2021 में हुई गणना के दौरान विभिन्न प्रजाति के 676 गिद्ध पाए गए थे। जो प्रदेश में दूसरे नंबर पर थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 850 हो गई है।

नीमच जिला गिद्धों के लिए सुरक्षित
नीमच जिला गिद्धों के आवास के लिए सुरक्षित साबित हो रहा है। चौथी गिद्ध गणना में नीमच जिले में स्थिति संतोषजनक पाई गई। जिले में 452 गिद्ध के बच्चे और 589 वयस्क गिद्ध पाए गए। पिछली गणना 2020-21 में हुई थी तब जिले में 543 गिद्ध पाए गए थे। इस बार कुल 1041 गिद्ध पाए गए। तीन साल में नीमच जिले में गिद्धों की संख्या दोगुनी तक पहुंच गई। प्रदेश में जहां गिद्धों की संख्या कम हो रही वही नीमच में इनकी संख्या साल-दर-साल बढ़ रही है।

सबसे अधिक सफेद गिद्ध
नीमच वन मंडल एसडीओ दशरथ अखंड ने बताया कि जिले में किंग बल्चर, व्हाइट बैवड वल्चर, लांग बिल्ड वल्चर देखे गए। लेकिन, इनमें सबसे अधिक इजिप्शियन कल्चर पाए गए हैं। यादव ने बताया कि इजिप्शियन कल्चर यानी सफेद गिद्ध बड़े वन्य जीव का मांस तो खाता है। लेकिन, वह नहीं मिलने पर यह जमीन पर कीड़ों को भी खाकर सर्वाइव कर जाता है। इसी कारण ये गिद्ध अभी बचे हैं। शेष प्रजातियां कम होती जा रही है।

प्रकृति के सफाई कर्मी है गिद्ध
गिद्ध केवल मरे हुए जानवरों को खाकर ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इस वजह से इन्हें प्रकृति के सफाई कर्मी के रूप में भी जाना जाता है। मवेशियों के उपचार के लिए प्रतिबंधित दवाई डिः लोफेनक के उपयोग और आवास स्थलों की कमी से गिद्ध की संख्या में अचानक से कमी आई थी। गिद्धों के संरक्षण के लिए उनके नेस्टिंग साइट को पहचान कर उनका संरक्षण बहुत जरूरी है। ताकि, इनकी संख्या बढ़ सके। गिद्धों के बचाव के लिए प्रकृति में गिद्धों के महत्व और उनकी कम होती संख्या से होने वाले विपरीत रिजल्ट से लोगों को जागरूक भी किया।

इसलिए रास आ रहा गांधी सागर
गांधीसागर अभ्यारण्य वन्य जीव जंतुओं के साथ पक्षियों के लिए भी अनूकुल है। ऐसे में गिद्धों के लिए भी यह अनुकूल है। पिछली बार गिद्धों की गणना में यहां गिद्धों की संख्या ने मंदसौर नीमच को प्रदेश के गिद्धों वाले जिलों में अव्वल पर पहुंचाया है। ऐसे में यहां के अनुकूल वातावरण के साथ उपलब्ध पानी और बेहतर खान-पान के कारण गिद्ध यहां आ रहे हैं। पहले भी यहां कई दुलर्भ प्रजातियों के गिद्ध पाए गए हैं। तमाम अनुकूलता के कारण गिद्ध अब गांधीसागर को अपना बसेरा बना रहे हैं। इसी श्रेणी में अब गिर के जंगलों से भी गिद्ध यहां पहुंच रहे हैं। गुजरात के गिर के जंगलों से 813 किमी से अधिक दूरी तय कर वहां के गिद्ध यहां पहुंचते हैं।

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