आज बिहार के लिए ऐतिहासिक दिन है। राज्य के महान विभूति, पूर्व उपमुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों रामनाथ ठाकुर अपने पिता के सम्मान को ग्रहण करेंगे। यह सम्मान बिहारवासियों का गौरव है। आइए जानते हैं कौन थे कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें जननायक कहा गया…
कर्पूरी ठाकुर का जन्म आज से 100 साल पहले भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में नाई जाति के परिवार में हुआ था। अब कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली होने के कारण इस गांव को कर्पूरीग्राम कहा जाता है। कर्पूरी ठाकुर समाजवाद के सच्चे सिपाही थे। केवल सत्रह साल की उम्र में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल गए। देश की आजादी वे लोकनायक जेपी और समाजवादी चिंतक डॉ.राम मनोहर लोहिया के सच्चे चेले थे। तब बिहार के लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी जैसे छात्र नेता राजनीति का ककहरा पढ़ रहे थे। इन सब ने कर्पूरी ठाकुर को राजनीतिक गुरु माना। कर्पूरी की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। वह बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था।
1970 और 1977 में मुख्यमंत्री बने थे कर्पूरी ठाकुर
कहा जाता है कि पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया। सत्तर के दशक में हुए जेपी आंदोलन एक टर्निंग प्वाइंट बन गया जब सारे समाजवादी और पिछड़े वर्ग के नेता एक झंडे के नीचे खड़े हो गए। कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था। 1973-77 के बीच लोकनायक जयप्रकाश के छात्र-आंदोलन से कर्पूरी भी जुड़ गए। 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से वह पहली बार सांसद बने। लेकिन बहुत जल्द लोकसभा से इस्तीफा देकर 24 जून, 1977 को कर्पूरी एक बार फिर मुख्यमंत्री बना दिए गए। यह कार्यकाल भी दो साल पूरे नहीं कर पाया। 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर इसके नेता बने।
दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया
महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया। बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए।