उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच टकराव गहराता जा रहा है। बृहस्पतिवार को राजनिवास ने केंद्रीय गृहमंत्रालय को शिकायत की है कि दिल्ली सरकार लगातार उपराज्यपाल पद को बदनाम कर रही है। बेवजह झूठ बोला जा रहा है जिससे कोर्ट में नए मामले बढ़ रहे हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी के बाद आप नेताओं ने राष्ट्रपति शासन लगाने की आशंका जताई थी। ऐसे में यह पत्र राजनीतिक गलियारे में बेहद अहम माना जा रहा है। एलजी कार्यालय ने पत्र में लिखा है कि अदालत से जुड़े मामले दिल्ली के मुख्य सचिव व उपराज्यपाल के पास पेश किए जाने चाहिए, लेकिन दिल्ली सरकार ऐसा नहीं कर रही। इससे अदालतों में नए परिसरों के निर्माण में देरी हुई। जिला अदालत से संबंधित प्रस्ताव 2019 से लंबित रहा। इस कारण न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हुई।
जल बोर्ड से संबंधित एक मामले में कोर्ट केस किया गया। इसमें कहा गया कि धन आवंटित करने के लिए एलजी को आदेश दिया जाए। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां मामला ठंडा पड़ गया। इसके अलावा हाईकोर्ट में आबकारी नीति 2021-22 से जुड़ा मामला चल रहा है। अदालत के 29 मार्च, 22 के आदेशानुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अनुरूप और गैर-अनुरूप वार्डों की पहचान व वर्गीकरण के उद्देश्य से समिति का गठन किया गया था।
इस मामले में कोर्ट केस चल रहा है। इसमें दिल्ली सरकार को दोषी बताया गया है। इसके अलावा दिल्ली की फरिश्ते योजना पर भी विवाद हुआ। इसमें कहा गया कि इसे फिर से चलाने के लिए अस्पतालों का बिल लंबित है। इस मामले को लेकर मीडिया में गलत तथ्य रखे गए। मामला कोर्ट तक पहुंचा और एलजी ऑफिस को नोटिस जारी हुआ, जबकि तथ्य पेश कर बताया गया कि योजना के नियम के तहत फंड दिया गया है। इसी तरह के कई मामले अलग-अलग अदालतों में चल रहे हैं। मुकदमेबाजी में सार्वजनिक खजाने के करोड़ों रुपये खर्च होने व अधिकारियों का समय खराब होने के साथ-साथ अदालत पर बोझ बढ़ रहा है।
निर्देशों का पालन न करने पर अदालतें अंतिम विकल्प : दिल्ली सरकार
उपराज्यपाल की ओर से गृहमंत्रालय को लिखे गए पत्र को लेकर दिल्ली सरकार ने पलटवार किया है। दिल्ली सरकार का कहना है कि अधिकारियों द्वारा मंत्रियों के निर्देशों का पालन नहीं करने पर अदालतें अंतिम विकल्प हैं। उपराज्यपाल भी ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को सेवाएं आवंटित करने के बावजूद केंद्र के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) संशोधन अधिनियम ने शीर्ष अदालत के फैसलों की अवहेलना करते हुए इन शक्तियों को खत्म कर दिया है।
ऐसे में अधिकारियों के गतिरोध ने जल बोर्ड फंड, फरिश्ते योजना, बस मार्शल और स्मॉग टावर्स सहित महत्वपूर्ण चीजों को रोक दिया है। इससे दिल्ली के दो करोड़ लोगों की सेवाएं अधर में लटक गई हैं। दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण करने का प्रयास किया जा रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पांच न्यायाधीशों की पीठ की ओर से एक फैसले में सेवाओं का प्रबंधन करने और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के दिन-प्रतिदिन के मामलों की देखरेख करने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकार की पुष्टि की है। एनसीटी को संघ की एक इकाई के रूप में शामिल नहीं किया जा सकता है। सरकार छोटी-छोटी चीजों के लिए भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को मजबूर है।