जुनून हो तो संसाधनों के अभाव में भी कामयाबी हासिल की जा सकती है। यह साबित कर दिखाया है भिखारीपुर की वेटलिफ्टर संध्या ने। सुबह-शाम अभ्यास और दिनभर चाय की दुकान पर काम कर संध्या सात पदक जीत चुकीं हैं।
आठ भाई-बहन में सबसे छोटी संध्या को समय से डाइट नहीं मिल पाती थी। सिगरा स्टेडियम में अभ्यास करने के बाद दुकान पर काम करतीं और ब्रेड-बटर खाती थीं। संध्या ने बताया कि परिवार बड़ा होने की वजह से घर में ठीक से खाने की व्यवस्था नहीं हो पाती थी।
पिता लालचंद्र भिखारीपुर में चाय की दुकान चलाते थे। पिता के न रहने पर खुद चाय दुकान चलाने लगीं। सुबह और शाम दुकान बढ़ा (थोड़े समय के लिए बंद करना) कर सिगरा स्टेडियम में अभ्यास करने जाती थीं।
काशी विद्यापीठ के खेल प्रशिक्षक डॉ़ दिनेश कुमार सिंह ने खेलने के लिए प्रेरित किया। वेटलिफ्टिंग की शुरुआत से पहले एथलेटिक ट्रैक पर करीब छह माह तक पसीना बहाया। 2018 में पहली बार प्रतियोगिता में भाग किया लेकिन सब जूनियर वर्ग में पदक हाथ नहीं लगा। इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारीं और अब तक 7 पदक जीत चुकी हैं।
कोच डॉ. दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि खिलाड़ियों की प्रतिभा देखकर उनका चयन किया जाता है। कोच विनय चौरसिया ने बताया कि खेल में मुश्किलें बहुत आती हैं। जिसमें हौसला होता है, वह सफल होता है।