पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की समस्या से परेशान है। इस समस्या के समाधान की दिशा में भारतीय शोधकर्ताओं ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने ऐसा जैविक तरीका विकसित किया है जिससे मीथेनोट्रोफिक बैक्टीरिया का उपयोग करके मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को स्वच्छ जैव ईंधन में बदला जा सकेगा।
इससे जहां ग्रीनहाउस गैसों के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभाव को रोका जा सकेगा, वहीं लगातार खत्म हो रहे जीवाश्म ईंधन भंडारों की कमी का समाधान होगा। यह ऊर्जा क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है। यह शोध एल्सेवियर जर्नल ‘फ्यूल’ में प्रकाशित हुआ है।
क्या बोले प्रोफेसर देबाशीष दास?
आईआईटी गुवाहाटी के बायोसाइंसेज एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर देबाशीष दास ने बताया, मीथेन और कार्बन डाइआक्साइड को तरल ईंधन में परिवर्तित करने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आ सकती है और नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध हो सकती है, लेकिन, इसका मौजूदा रासायनिक तरीका महंगा हैं और इससे विषैले बाई- प्रोडक्ट निकलते हैं।
यह एक किफायती तरीका है
दास ने कहा कि उनकी टीम ने पूर्ण जैविक प्रक्रिया विकसित की है, जो मीथेन और कार्बन डाइआक्साइड को बायो-मेथनाल में परिवर्तित करने के लिए मीथेनोट्रोफिक बैक्टीरिया का उपयोग करती है। इस प्रक्रिया में विषैला बाइ- प्रोडक्ट नहीं निकलता। यह तरीका किफायती भी है।
यह शोध दर्शाता है कि मीथेन और कार्बन डाइआक्साइड खाने वाले बैक्टीरिया से मिलने वाला बायो-मेथनाल, जीवाश्म ईंधन का विकल्प हो सकता है। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की क्षमता के साथ यह स्वच्छ और हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति है।
उन्होंने कहा, पारंपरिक जैव ईंधन फसलों पर निर्भर होते हैं, वहीं इस विधि में ग्रीनहाउस गैसों का उपयोग करती है। शोधकर्ताओं ने दावा किया कि इस विधि से कार्बन मोनोआक्साइड, हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन सल्फाइड और धुएं के उत्सर्जन में 87 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।