
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी कर्मचारी को पदोन्नति से वंचित करने के लिए केवल आपराधिक मामलों की लंबितता को आधार नहीं बनाया जा सकता। खासकर तब जब उस मामले में कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया हो। अदालत ने राज्य सरकार और पुलिस विभाग को आदेश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता को ऑनरेरी असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर (एएसआई) के पद पर पदोन्नति करें। इसके साथ ही पदोन्नति उस तारीख से दी जाएगी, जब उनके कनिष्ठों को पदोन्नति किया गया। अदालत ने सभी लाभ भी प्रदान करने के आदेश दिए हैं। न्यायालय ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता विभागीय जांच में दोष मुक्त हो चुका है और आपराधिक मामले में अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ है इसलिए उन्हें पदोन्नति देने से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग के स्टैंडिंग ऑर्डर का भी उल्लेख किया, जिसमें यह प्रावधान है कि यदि विभागीय जांच या आपराधिक जांच लंबित है तो डीपीसी की सिफारिश सील्ड कवर में नहीं रखनी चाहिए, बशर्ते कि विभागीय जांच में आरोप पत्र जारी हो गया हो या आपराधिक मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया हो। यदि ऐसा नहीं हुआ है तो कर्मचारी को पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए। किसी भी कर्मचारी को पदोन्नति से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक की उसके खिलाफ कोई आरोप पत्र दाखिल ना हो जाए। याचिकाकर्ता जो वर्तमान में ऑनरेरी कांस्टेबल के पद पर कार्यरत है। उसके खिलाफ वर्ष 2011 में एक एफआईआर दर्ज की गई थी। यह मामला एक अन्य आपराधिक मामले से जुड़ा है, जिसमें एक व्यक्ति से चरस की बरामदगी की गई थी।
आरोपी ने निचली अदालत की ओर से दी गई सजा के फैसले खिलाफ अपील दायर की। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उस मालखाने का ताला प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था, जहां से चरस बरामद हुई थी। ताला न खोलने पर न्यायालय ने तत्कालीन मालखाना प्रभारी के खिलाफ जांच का आदेश दिया था। जिसके तहत याचिकाकर्ता सहित आठ व्यक्तियों के खिलाफ 2011 में एफआईआर दर्ज की गई, क्योंकि वह भी उस समय मालखाने के प्रभारी थे। इन सभी आरोपियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी शुरू की गई, जिसमें याची वीर सिंह को विभाग ने 2012 की रिपोर्ट में दोष मुक्त कर दिया गया। आपराधिक मामले में जांच एजेंसी ने बार-बार अनट्रेंसड रिपोर्ट दायर की, लेकिन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट लद्दाख और स्पीति कुल्लू ने उन्हें स्वीकार नहीं किया और पुलिस को आगे जांच का निर्देश दिया। आपराधिक मामले के लंबित रहने और विभागीय जांच में दोष मुक्त होने के बावजूद वीर सिंह को पदोन्नति नहीं किया जा रहा था। इसी कारण उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।