
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कर्नाटक मजदूर कल्याण बोर्ड और भारतीय रेलवे में गंभीर लापरवाहियों को लेकर बड़े खुलासे किए है। इसके तहत सीएजी की रिपोर्ट में कर्नाटक में निर्माण श्रमिकों की भलाई के लिए बनी कर्नाटक भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड की कार्यप्रणाली में गंभीर खामियां और भारतीय रेलवे में लंबी दूरी की ट्रेनों में सफाई और पानी की व्यवस्था को लेकर कई बड़ी बातें और ज्यादातर यात्रियों की असंतुष्टि का जिक्र किया गया है।
बात अगर कर्नाटक भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड की कार्यप्रणाली की करें तो विधानसभा में पेश की गई सीएजी की रिपोर्ट ने बोर्ड में सेस संग्रह, लाभार्थियों के पंजीकरण और योजनाओं के क्रियान्वयन में कई गड़बड़ियों की ओर इशारा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड के पास निर्माण लागत का मूल्यांकन करने की कोई तय प्रक्रिया नहीं है। अधिकारी केंद्रीय मूल्यांकन समिति के बनाए रजिस्ट्रेशन रेट्स पर निर्भर थे, जो केवल मार्गदर्शक के रूप में उपयोग होने चाहिए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018-19 से 2022-23 के बीच ₹10,154.45 करोड़ का बजट था, जिसमें से सिर्फ ₹6,198.34 करोड़ खर्च किए गए। हालांकि, कुल भुगतान (जमा सहित) ₹12,535.54 करोड़ रहा।
रिपोर्ट में बोर्ड द्वारा की गई गड़बड़ियों की ओर इशारा
रिपोर्ट में बताया गया है कि बोर्ड ने लेबर वेलफेयर सेस की वसूली और जमा करने में बड़ी गड़बड़ियां की हैं। इसके तहत 2007-08 से 9,654 चेक और डिमांड ड्राफ्ट तकनीकी गड़बड़ी के कारण लौटाए गए, जिसकी कीमत ₹18.12 करोड़ थी। वहीं कर्नाटक स्लम डेवलपमेंट बोर्ड से ₹5.27 करोड़ का सेस अभी तक ट्रेस नहीं हो पाया है। इसके साथ ही बंगलौर मेट्रो ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (बीएमटीसी) ने ₹6.06 करोड़ की राशि दो साल तक अपने पास रखी, उसे बोर्ड को नहीं भेजा।