प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए हेल्दी डाइट के साथ पर्याप्त नींद लेना तनाव से दूर रहने और योग व एक्सरसाइज को रूटीन में शामिल करने की सलाह दी जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं आंतों का स्वास्थ्य भी प्रजनन क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है? जी हां गट हेल्थ और फर्टिलिटी का आपस में बहुत ही गहरा कनेक्शन है।
हममें से कई लोग इस बात से अनजान होंगे आंतों की सेहत और प्रजनन स्वास्थ्य के बीच बहुत ही महत्वपूर्ण रिश्ता होता है। वैसे तो आंतों की सेहत ओवरऑल हेल्थ के लिए ही बेहद जरूरी है। गट हेल्थ से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या का प्रभाव पाचन से लेकर इम्युनिटी और यहां तक कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। आंतों में मौजूद बैक्टीरिया शरीर के कई सारे फंक्शन्स को प्रभावित करते हैं, जिसमें से एक प्रजनन स्वास्थ्य भी है।
प्रजनन पर गट हेल्थ का प्रभाव
डॉ. पारुल गुप्ता, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, वसंत विहार बताती हैं कि, ‘प्रजजन हॉर्मोन, एस्ट्रोजन के निर्माण में गट हेल्थ काफी अहम भूमिका निभाती है। उम्र के साथ योनि के सूक्ष्मजीवों में अंतर पाया जाता है, लेकिन प्रजनन की उम्र वाली ज्यादातर सेहतमंद महिलाओं में सबसे ज्यादा लैक्टोबैसिलस प्रजाति पाई जाती है। ये बैक्टीरिया योनि में एस्ट्रोजेन की डेंसिटी को बढ़ाते हैं। जिससे वजाइना से गाढ़ा स्राव होता है और पीएच का लेवल भी सही रहता है। ये दोनों ही स्पर्म के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं।’
वहीं आंतों के हेल्दी बैक्टीरिया का असंतुलन मेटाबॉलिज्म से जुड़ी परेशानियां पैदा कर सकता है। इस असंतुलन से महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस या पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम जैसी प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं, तो पुरुषों के स्पर्म निर्माण पर प्रभाव पड़ सकता है।
मां के स्वास्थ्य पर प्रभाव
गर्भावस्था का सफर आसान हो इसके लिए गर्भावस्था के दौरान आंतों के गुड बैक्टीरिया का संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। ये बैक्टीरिया पाचन को बेहतर बनाते हैं, पोषक तत्वों को अवशोषित करने और इम्यून सिस्टम को दुरुस्त बनाए रखने में मदद करते हैं। साथ ही सूजन को भी कम करते हैं, जिससे गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं जैसे जेस्टेशनल डायबिटीज और प्रीएक्लेम्पसिया समस्याओं की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है।
बैलेंस डाइट, प्रोबायोटिक्स और हेल्दी लाइफस्टाइल के जरिए आंतों को सेहतमंद रखा जा सकता है और फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं भी काफी हद तक दूर की जा सकती हैं। प्रोबायोटिक्स के साथ डाइट में फाइबर, प्रीबायोटिक्स की भी मात्रा बढ़ाएं। नियमित रूप से योग व एक्सरसाइज करें और तनाव से दूर रहें।