इस साल भी जागरण फिल्म फेस्टिवल (Jagran Film Festival) का यह संस्करण सिने प्रेमियों के साथ ही थिएटर कलाकारों को आकर्षित कर रहा है। अक्षरा, अनमास्क, रेनेसां, राफ्ता और दिल्ली की थिएटर सोसाइटियों के वरिष्ठ कलाकारों का हुजूम प्रतिदिन फेस्टिवल में उमड़ रहा है। इन कलाकारों ने बालीवुड की फिल्मों से लेकर फ्रांस, इटली और बांग्लादेश के सिनेमा को देखा व समझा।
मंच पर प्रस्तुत होने वाली अभिनय कला को बड़े पर्दे पर प्रस्तुत करने की यात्रा से परिचित हुए। फिल्म फेस्टिवल से अब तक 1250 थिएटर आर्टिस्ट जुड़ चुके हैं। सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में फिल्मों का मेला लगा है। थिएटर कलाकारों के लिए जागरण फिल्म फेस्टिवल सीखने-समझने का बड़ा मंच भी साबित हो रहा है। सुबह से शाम तक कलाकार जहां फिल्मों के माध्यम से सीख रहे हैं, वहीं सिने जगत से जुड़े लोगों को अपने बीच पाकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी हो रहे हैं।
तीसरे दिन इन फिल्मों का किया गया प्रदर्शन
द कान्स्टेंट फैक्टर- पोलैंड के निर्देशक क्रिस्टोफ जानूसी की यह फिल्म 92 मिनट की है। यह एक युवा की कहानी है, जो अपनी बीमार मां की देखभाल करता है। नौकरी में एक छोटा सा भ्रष्टाचार उसे फंसा देता है और हिमालय में पहाड़ों पर चढ़ने की उसकी एकमात्र इच्छा पूरी नहीं हो पाती है।
सैम बहादुर- कुल 150 मिनट की इस फिल्म का निर्देशन मेघना गुलजार ने किया है। फिल्म फील्ड मार्शल सैम मानेकशा के जीवन और पाकिस्तान के युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है। अभिनेता विकी कौशल ने इसमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशा का किरदार निभाया है।
लेओवर– इस डॉक्यू ड्रामा का निर्देशन ईरानी निर्देशक अतेफे फरहांगिकिया ने किया है। काल्पनिक वृत्तचित्र फिल्म लेओवर यूक्रेन इंटरनेशनल एयरलाइंस की उड़ान पीएस-752 की कहानी बताती है, जो 8 जनवरी 2020 को तेहरान से कीव के लिए एक निर्धारित उड़ान थी।
इसे यूक्रेन इंटरनेशनल एयरलाइंस द्वारा संचालित किया गया था। उड़ान भरने के तुरंत बाद विमान को इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आइआरजीसी) ने मार गिराया। इसमें सवार सभी 176 लोग मारे गए थे। यह फिल्म ईरानी प्रवासी की पृष्ठभूमि के साथ-साथ विमान के अंदर एक परिवार कहानी भी बताती है।
बिन्नी एंड फैमिली– संजय त्रिपाठी निर्देशित यह फिल्म 140 मिनट की है। किशोरी बिन्नी और बिहार से उसके रूढ़िवादी दादा एक नाटकीय घटना के बाद जुड़ते हैं। इसके माध्यम से संजय बताते हैं कि क्या विपरीत व्यक्तित्व पीढ़ीगत अंतर को पाट सकते हैं और क्या एक-दूसरे के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं।
मुंबई मेलोडीज– निर्देशक स्वरूप राज पांडा की यह डाक्यूमेंट्री मुंबई के बालीवुड संगीत उद्योग में दशकों से हो रहे आकर्षक बदलाव को उजागर करती है। गोल्डन एरा के दिग्गज संगीतकारों के साक्षात्कारों के साथ शास्त्रीय गीत निर्माण के रहस्यों से यह परिचित कराती है। फिर आधुनिक युग के डिजिटल जादू, रिकार्डिंग स्टूडियो और साफ्टवेयर को दिखाते हुए पीढ़ियों और संस्कृति को जोड़ती है।
बिलाई– बांग्लादेशी निर्देशक एमडी आबिद मलिक की यह लघु कथा कोरोना महामारी के दौरान निम्न वर्ग के लोगों ने लाकडाउन में कैसे अपना जीवन बचाया, इसे दर्शाती है। यह उत्तम और उसकी बिल्ली की लाकडाउन में जीवित रहने और मानवता को जीवित रखने की कहानी है।