डिंडोरी में जर्जर स्कूल भवनों ने खोली सरकारी शिक्षा व्यवस्था की पोल

मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिला इन दिनों सरकारी स्कूलों की बदहाल हालत को लेकर सुर्खियों में है। जिले के सैकड़ों स्कूल भवन जर्जर हो चुके हैं, लेकिन शासन-प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। नतीजा यह हुआ कि अब ग्रामीणों को खुद स्कूल भवनों में ताले जड़ने को मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि इनमें बच्चों की सुरक्षा खतरे में है। कहीं राशन दुकान के कमरे को क्लासरूम बनाया गया है तो कहीं किचन शेड या पंचायत भवन को स्कूल में तब्दील कर दिया गया है।

डिंडौरी जिले के मेंहदवानी जनपद अंतर्गत बुल्दा गांव की कहानी बेहद चौंकाने वाली है। यहां प्राथमिक और माध्यमिक शाला भवन पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं। किसी भी समय ये भवन ढह सकते हैं, इस डर से ग्रामीणों ने एकमत होकर स्कूलों में ताले लगा दिए। यहां कुल 163 छात्र हैं और फिलहाल पढ़ाई सरकारी राशन दुकान के तीन छोटे कमरों में चल रही है। न खिड़की, न पंखा, गर्मी और उमस के बीच बच्चे बेहाल हैं। हालात इतने खराब हैं कि कुछ दिन पहले एक छात्र बेहोश हो गया। हेडमास्टर ने खुद स्वीकार किया कि जब बैठने की भी जगह नहीं है तो पढ़ाई कैसे हो।

बुल्दा की तरह ही खाई पानी गांव में भी स्थिति चिंताजनक है। यहां पांच साल पहले जर्जर स्कूल भवन को गिरा दिया गया था, लेकिन नया भवन अब तक नहीं बना। मजबूरी में पहली से पांचवीं कक्षा के 30 छात्रों को किचन शेड के एक छोटे से कमरे में बैठाकर पढ़ाया जा रहा है। जिस जगह मध्यान्ह भोजन बनना चाहिए था, उसी में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। शिक्षक बताते हैं कि 10×10 फीट के कमरे में पांच क्लासों का संचालन किया जा रहा है। ऐसे में बच्चों की शिक्षा पर सवाल उठना लाजमी है। इसी तरह ग्राम पंचायत पायली में भी ग्रामीणों ने खंडहर हो चुके स्कूल भवन को ताले लगाकर बंद कर दिया है। अब ग्राम पंचायत कार्यालय के हॉल और कमरों में बच्चों की क्लास लगाई जा रही है।

सरकारी आंकड़े खुद गवाही देते हैं कि डिंडौरी जिले के 500 से अधिक स्कूल भवनों को मरम्मत की जरूरत है, जबकि दर्जनों पूरी तरह खंडहर बन चुके हैं। हर साल इन भवनों की रिपोर्ट भोपाल भेज दी जाती है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात कागजों पर आंकड़े चलते हैं, जमीनी हालात जस के तस बने हुए हैं।

सबसे दुखद पहलू यह है कि पूरे हालात से जिलाप्रशासन व शिक्षा विभाग भलीभांति परिचित हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही। ग्रामीणों ने वर्षों से जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत की मांग की है, लेकिन जब सुनवाई नहीं हुई तो अब वे खुद आगे आकर बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। जिले में शिक्षा की यह बदहाल स्थिति न सिर्फ बच्चों के भविष्य को अंधेरे में धकेल रही है, बल्कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था की गंभीर असफलता को भी उजागर कर रही है। आवश्यकता है कि सरकार और प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल ध्यान दे और बच्चों को सुरक्षित और समुचित वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित करे।

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